नमस्कार दोस्तों आज के इस पर्यावरण संरक्षण पर निबंध | Paryavaran Sanrakshan par nibandh या यूं कहें पर्यावरण संरक्षण पर लेख में हम लोग पर्यावरण से संबंधित व सारी बातों को जानेंगे जिससे हम अपने पर्यावरण का संरक्षण बहुत ही अच्छे तरीके से कर पाए। अगर आप पर्यावरण संरक्षण पर निबंध (Paryavaran Sanrakshan par nibandh) लिख रहे हैं या उस पर स्पीच, भाषण या वाद-विवाद प्रतियोगिता के लिए तैयारी कर रहे हैं तो आप इस लेख को अंत तक पढ़े और फिर खुद से लिखने का प्रयास करें।
Paryavaran Sanrakshan par nibandh | पर्यावरण संरक्षण पर निबंध
भारतीय संस्कृति में ‘जियो और जीने दो’ का सिद्धांत सर्वोपरि रहा है, जो केवल प्राणियों तक सीमित नहीं। इसमें चर-अचर, जड़-चैतन्य प्रकृति का हर घटक शामिल है। मनुष्य जीवन और प्रकृति के बीच सामंजस्य इसका मूलमंत्र रहा है, जिसमें प्रकृति का अंग बनकर रहने का भाव रहा है कि उससे उतना ही लिया जाए, जितना कि आवश्यक हो। हवा, पानी, पृथ्वी, अग्नि, आकाश जैसे मूलतत्त्वों से सृष्टि की रचना होने के कारण भारतीय दर्शन एवं चिंतन में इनकी शुद्धता एवं प्रदूषणरहितता पर विशेष ध्यान दिया गया है। हमारी संस्कृति आगाह करती है कि प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने से ही पर्यावरणीय संरक्षण संभव है, जो हमें वर्तमान एवं भविष्य में होने वाले दुष्परिणामों से बचा सकता है।
प्रकृति के साथ सहअस्तित्व, सामंजस्य और सौहार्दपूर्ण मातृभावयुक्त सम्माननीय दृष्टि ही भारतीय संस्कृति का विधान है। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने वनों के बीच रहकर जीवन के उच्चतर सत्यों का संधान किया। प्रकृति से हमारा न तो कोई संघर्ष रहा तथा न प्रकृति पर विजय पाने जैसे विचारों से हमारी संस्कृति निर्मित रही। जहाँ विजित-विजेता का, नियंत्रित-नियामक का भाव होगा, वहाँ संघर्ष तो होगा ही। गांधी जी ने उचित ही कहा था कि प्रकृति के पास सभी की आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन तो हैं, पर लालसाओं की पूर्ति के नहीं। भारतीय संस्कृति लालसा पर रोक लगाती है, जिससे प्रकृति का दोहन रुक सके।
पर्यावरण के प्रति भारतीय दृष्टि पर प्रकाश डालते हुए कवि टैगोर कहते हैं कि भारत में वन और प्राकृतिक जीवन मानव जीवन को एक निश्चित दिशा देते थे, मानव जीवन प्राकृतिक जीवन की वृद्धि के साथ निरंतर संपर्क में था। वह अपनी चेतना का विकास आस-पास की भूमि से करता था, उसने विश्व की आत्मा तथा मानव की आत्मा के बीच के संबंध को महसूस किया। मानव और प्रकृति के मध्य के इस तारतम्य ने पर्यावरण को आत्म-अर्पित करने के शांतिपूर्ण एवं बेहतर तरीकों को जन्म दिया।
वस्तुत: भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण के प्रति विशिष्ट भाव अंतर्निहित रहा है। प्रकृति नियमों के अनुरूप जीवन व्यतीत करने की बात करते हुए यजुर्वेद कहता है कि प्रकृति देवी के सौंदर्य को देखो, उससे प्रसन्नता को प्राप्त करो, जो मूर्तरूप में भगवान का काव्य है। अथर्ववेद कहता है कि हे पृथ्वी ! तेरी धरती पर विचरण करने वाले सभी छोटे-बड़े प्राणी, जिनमें मनुष्य का भी समावेश हो जाता है, परमपिता परमात्मा के अंश से उत्पन्न हुए हैं। उनको तेरे जल, वायु और सौर ऊर्जा से सुखरूपी पोषण प्राप्त हो।
श्रीमद्भागवत के अनुसार हम सभी परमात्मा के खेल- खिलौने हैं और उनकी रचना को सुंदर व समुन्नत बनाने के लिए विशेष उद्देश्य हेतु भेजे गए हैं। हम सब उस एक परमपिता परमेश्वर से उत्पन्न भाई-भाई हैं, इसके अंग-अवयव हैं। यदि ऐसा भाव रहा तो प्रकृति के प्रति स्व-स्फूर्त संवेदना रहेगी और ऐसे में न ही पर्यावरण प्रदूषण होगा और न ही प्रकृति का दोहन होगा।
इसी तरह शांतिपाठ में पर्यावरण के महत्त्व के भाव ही निहित हैं और साथ ही प्रकृति के कोप से होने वाले भयंकर परिणाम से बचने के उपाय भी। शांतिपाठ के अनुसार-वायु हमारे लिए सुखस्वरूप हो । सूर्य सुखकर होकर तपे। अत्यंत गर्जन करने वाले पर्जन्य देव भी हमारे लिए सुखकर होकर अच्छी तरह से बरसें। द्यौ लोक, अंतरिक्ष लोक और पृथ्वी लोक सुखदायक हों। जल, औषधियाँ और वनस्पतियाँ शांति देने वाली हों, समस्त देवता, ब्रह्म और सब कुछ शांतिदायी हों। जो शांति सर्वत्र विश्व में फैली हुई है, वह सभी को प्राप्त हो। सभी को बराबर शांति का अनुभव होता रहे।
सृष्टि के हर घटक में दैवी आस्था रखने वाली वैदिक : संस्कृति में पर्यावरण को तैयार करने वाले पृथ्वी, वायु, जल, आकाश, चंद्र और सूर्य आदि मूलभूत तत्त्वों को देवता की संज्ञा दी गई है। हमारे शरीर व जीवन के पोषण करने वाले इन तत्त्वों के संरक्षण के लिए तन-मन-धन से अर्पित होने का आदेश दिया गया है। इनकी शुद्धि, पवित्रता का भाव इसमें निहित है, जिसके लिए यज्ञ, हवन आदि करने का निर्देश दिया गया है।
पर्यावरण के महत्त्व को देखते हुए, प्रात:काल पंचतत्त्वों के स्मरण करने का भी यहाँ विधान रहा है। वामन पुराण में भावना की गई है कि पृथ्वी अपनी सुगंध, जल अपने बहाव, अग्नि अपने तेज, अंतरिक्ष अपनी शब्द-ध्वनि और वायु अपने स्पर्श गुण के साथ हमारे प्रात:काल को भी आशीर्वाद दें।
यजुर्वेद की ऋचा भी पर्यावरण के महत्त्व को उद्घाटित करते हुए कहती है कि वे जो नैतिक मर्यादाओं को स्वीकार करने की इच्छा रखते हों, यह वायु उनके लिए सुखकर हो, जलधाराएँ उनके लिए सुखकर हो जाएँ। वनस्पतियाँ नीतिपरायण जीवन जीने वाले हम सबके लिए सुखकर हो जाएँ। रात हमारे लिए सुखकर हो जाए और यह भोर हमारे लिए सुखकर हो। हे सृष्टिकर्ता! हमारे लिए पृथ्वी और स्वर्ग सुखकर हो जाएँ। वन देवता हमारे लिए सुखकर हों, सूर्यदेव हमारे लिए सुखकर हो जाएँ और धेनु हमारे लिए सुखकर हों।
वैदिक ऋचाओं के पारायण से स्पष्ट होता है कि प्राचीनकाल में हमारे ऋषिगण प्रकृति व पर्यावरण को कितना महत्त्व देते थे। प्रकृति जीवन को पोषित करती है और स्वस्थ पर्यावरण हमारे अस्तित्व का आधार है, इसे वे बखूबी जानते थे और प्रकृति को परमेश्वरी कहते हुए देवशक्ति के रूप में ऋषिगण इसकी उपासना व अर्चना करते थे।
शांतिकुंज के युग निर्माण आंदोलन के अंतर्गत सप्तसूत्रीय कार्यक्रम के अंतर्गत पर्यावरण संरक्षण एक महत्त्वपूर्ण अभियान है। इसके प्रत्यक्ष रूप में हरीतिमा संवर्द्धन, जलस्रोतों का शुद्धीकरण और परोक्ष रूप में यज्ञ अभियान प्रकृति एवं पर्यावरण संतुलन की अभिनव पहल हैं, जिनमें प्राचीन ऋषियों की वाणी ही ध्वनित होती है।
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ऋषि मुनि और गुरु के शब्दों में – प्रकृति के विविध घटकों में परमेश्वर की पराचेतना को अनुभव करें, तभी जंतुओं एवं वनस्पतियों के प्रति संवेदनशील भाव विकसित हो सकेगा। प्रकृति के विभिन्न घटकों के उपयोग की ही नहीं, बल्कि संरक्षण की भी हमारी जिम्मेदारी है। भूजल, जंगल, जमीन, नदियों आदि के प्रति आक्रामक रवैया छोड़कर इनके विकास पर ध्यान दें व इनके प्रति आत्मीयतापूर्ण व्यवहार करें। इसी में प्रकृति एवं पर्यावरण संरक्षण के समाधान-सूत्र निहित हैं, जिसका प्रतिपादन हमारी संस्कृति आदिकाल से करती आ रही है।
निष्कर्ष: पर्यावरण संरक्षण पर निबंध | Paryavaran Sanrakshan par nibandh
तो यह रहा पर्यावरण संरक्षण पर निबंध (Paryavaran Sanrakshan par nibandh) जिसे पढ़ने के बाद हमें आशा है कि आप अब पर्यावरण संरक्षण या पर्यावरण से संबंधित किसी भी तरीके का निबंध अपनी भाषा में बहुत ही अच्छी तरह से लिख पाएंगे यहां किसी परीक्षा के लिए पर्यावरण संरक्षण से संबंधित इंफॉर्मेशन एकत्रित कर रहे हैं तो भी यह निबंध आपके लिए बहुत ही काम आएगा।
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