सिंधु जल समझौता क्या है: Indus Waters Treaty in Hindi

Share it now:

नमस्कार दोस्तों! सिंधु जल समझौता [ Indus waters treaty in hindi ] के बारे में आप क्या जानते हैं? शायद आप सिंधु जल समझौता क्या है (Sindhu jal samjhauta kya hai) का नाम पहली बार सुन रहे हैं या फिर ऐसा हो सकता है की इसके बारे में आप थोड़ा बहुत कुछ जानते हो लेकिन आज के इस आर्टिकल में आपको सिंधु जल समझौता के संबंध में पूरी जानकारी यहां पर प्राप्त होगी जो कि सभी प्रकार के प्रतियोगी परीक्षाओं में आपको करंट अफेयर के तौर पर यह आर्टिकल काफी मदद करेगा…

हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच तकरीबन 2 साल के बाद सिंधु जल समझौते लेकर बैठक हुई है । इसके लिए पाकिस्तान के शीर्ष राजनयिकों का एक प्रतिनिधिमंडल दिल्ली के दौरे पर पहुंचा था । सिंधु जल संधि यानी आई डब्ल्यूपी को लेकर दोनों देशों के बीच इस तरह की आखिरी बैठक अगस्त 2018 में लाहौर में हुई थी।

इससे पहले तयशुदा एजेंडे के मुताबिक 31 मार्च 2020 को भारत में एक बैठक होने वाली थी जो नहीं हो पाई । दरअसल भारत ने एक वर्चुअल बैठक का सुझाव दिया था लेकिन पाकिस्तान एक भौतिक बैठक चाहता था पर कोविड-19 महामारी के कारण यह बैठक नहीं हो पाई थी।

फिर हालिया बैठक को बड़े लिहाज से अहम माना जा रहा था की यह बैठक 2019 में हुए पुलवामा हमले बालाकोट एयर स्ट्राइक और जम्मू और कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने के बाद हुई है तब से दोनों देशों के संबंधों में काफी उतार-चढ़ाव देखे गए हैं और उस समय से भारत ने इस क्षेत्र के लिए कई जल विद्युत परियोजनाओं को मंजूरी दी है और पाकिस्तान को इसके बारे में सूची गया है।

बीते दिनों से इस संपन्न हुई बैठक में भारत द्वारा बनाए गए चिनाब नदी पर जल विद्युत परियोजनाओं पर पाकिस्तान ने आपत्ति जताई है वहीं भारत ने इन आरोपों को खारिज करते हुए पाकिस्तान पर उल्टे आरोप लगाए हैं हालांकि यह कोई नई बात नहीं है दोनों देश इस समझौते के उल्लंघन को लेकर सरस्वती आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहते हैं।

सिंधु समझौते को लेकर 60 साल बीत जाने के बाद भी अब तक दोनों देशों के बीच इस मुद्दे का सटीक हल और सुझाव नहीं हो पाया है तो चलिए आप समझते हैं आखिरकार सिंधु जल समझौता क्या है और किस हद तक यह दोनों देशों के बीच मायने रखता है।

सिंधु जल समझौता क्या है? (Indus waters treaty in hindi)

Indus waters treaty in hindi

सिंधु जल समझौता को समझने से पहले सबसे पहले हम जान लेते हैं सिंधु नदी जल तंत्र के बारे में….

भारतीय उपमहाद्वीप का उत्तर पश्चिम क्षेत्र सिंधु की भूमि कहलाती है । पश्चिम से सिंधु के प्रमुख सहायक नदियां काबुल एवं कुरेन नदियां हैं वहीं पूर्व से पांच प्रमुख सहायक नदियाँ- झेलम, चिनाब, रावी, व्यास तथा  सतलुज है यानी सिंधु नदी तंत्र में मुख्य मुख्यता 6 नदियों सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, व्यास तथा सतलुज को शामिल किया जाता है । 

सिंधु प्रणाली की सभी प्रमुख नदियां बारहमासी है इस की सहायक नदियां मानसून वर्षा पर अधिक निर्भर रहती है इन नदियों के बहाव वाले क्षेत्र मुख्य रूप से भारत और पाकिस्तान द्वारा साझा किया जाता है ।

हालांकि इसका छोटा हिस्सा लगभग 13 फीसद क्षेत्र तिब्बत जो कि चीन अधिकृत और अफगानिस्तान में भी मिलता है । भारत में सिंधु घाटी हिमाचल प्रदेश पंजाब हरियाणा राजस्थान राज्य एवं यूटी जम्मू और कश्मीर में स्थित है सिंधु नदी बेसिन पानी की मांग वाले सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से एक है और इस क्षेत्र के लोग पीने के पानी और कृषि सिंचाई के लिए इन नदियों पर ही निर्भर है यहां तक कि सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों को पाकिस्तान की कृषि अर्थव्यवस्था की केंद्रीय माना जाता है ।

इसके लगभग 60% आबादी नदी के मैदान में रहती है और नदी के पानी से कृषि होती है 1947 में आजादी के पहले सिंधु नदी के जल को लेकर कोई विवाद नहीं था लेकिन देश के विभाजन और दूर स्वतंत्र राजनीतिक संस्थाओं भारत और पाकिस्तान का उद्भव होने से सिंधु जल के बंटवारे का विवाद हुआ तथा यह एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बन गया तकरीबन 8 सालों तक हुए विचार-विमर्श और बातचीत के बाद सिंधु जल संधि अस्तित्व में आए आप जानते हैं सिंधु नदी जल समझौता 1960 क्या है?

सिंधु नदी जल समझौता 1960


सिंधु नदी के जल के वितरण के लिए एक समझौता किया गया था जिसे सिंधु जल समझौते के नाम से जाना जाता है।

19 सितंबर 1960 को वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता के माध्यम से भारत और पाकिस्तान के बीच कराची पाकिस्तान में सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए गए समझौते पर भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे ।

हालांकि यह संधि 1 अप्रैल 1960 से प्रभावी है सिंधु जल समझौते के तहत सिंधु नदी तंत्र की तीन पूर्वी नदियों – रवि, सतलुज और व्यास के जल पर भारत को पूरा अधिकार दिया गया जबकि तीन पश्चिमी नदियों – झेलम, चिनाब और सिंधु के जल को पाकिस्तान को दिया गया समझौते के मुताबिक भारत पूर्वी नदियों के पानी का कुछ आपवादों को छोड़कर बेरोक – टोक इस्तेमाल कर सकता है । 

भारत से जुड़े प्रावधानों के तहत रवि , सतलज और व्यास और नदियों के पानी का इस्तेमाल परिवहन, बिजली और कृषि के लिए करने का अधिकार भारत को दिया गया इसका मतलब यह नहीं कि भारत पश्चिमी नदियों का पानी बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं कर सकता समझौते में पश्चिमी नदियों सिंधु , झेलम और चिनाब पर पाकिस्तान को पूरे पानी का हक दिया गया है लेकिन भारत इन पश्चिमी नदियों से केवल सीमित जरूरतों जैसे घरेलू प्रयोग और गैर उपभोज्य जरूरतों जैसे सिंचाई और जल विद्युत निर्माण के लिए पानी का सीमित इस्तेमाल कर सकता है ।

इन सीमित कार्य में शामिल है समझौते के तहत भारत को पश्चिमी नदियों से 3.6 एम ए एस यानी मिलियन एकड़ फीट पानी स्टोर करने का अधिकार है साथ ही भारत इन पश्चिमी नदियों के पानी से 700000 एकड़ क्षेत्र में लगी फसलों की सिंचाई कर सकता है । भारत इन नदियों पर जल विद्युत परियोजनाएं बना सकता है लेकिन उसे रन ऑफ द रिवर प्रोजेक्ट ही बनाने होंगे जिनके तहत पानी को रोका नहीं जाता इस संधि में दोनों देशों के बीच समझौते को लेकर बातचीत करने और साइड के मुहाना आदि का प्रावधान भी था ।

सिंधु जाल संधि 1960 के अनुच्छेद – 8 के अंतर्गत इस संधि के क्रियान्वयन के लिए एक स्थाई सिंधु आयोग यानी परमानेंट इंडस कमीशन के गठन का प्रावधान किया गया है इस संधि के तहत आयोग की बैठक साल में कम से कम एक बार जरूर आयोजित की जानी चाहिए संधि के मुताबिक यह बैठक हर साल बारी – बारी भारत और पाकिस्तान में आयोजित किए जाने की बात कही गई है इस संधि में यह भी प्रावधान किया गया है कि जब कोई एक देश किसी परियोजना पर काम करता है और दूसरे को उस पर कोई आपत्ति है तो उस देश को परियोजना पर आपत्ति का जवाब देना होगा इसके लिए दोनों पक्षों की बैठकें भी हो सकेंगे बैठक भी यदि कोई हल नहीं निकल पाया तो दोनों देशों की सरकारों को इसे सुलझाना होगा ।

जल संधि पर भारत की वर्तमान स्थिति


आप जानते हैं जलसंधि पर भारत की वर्तमान स्थिति क्या बनी हुई है?

सिंधु जल संधि के तहत जिन पूर्वी नदियों के पानी के इस्तेमाल का अधिकार भारत को मिला था उसका उपयोग करते हुए भारत ने सतलज पर भाखड़ा बांध, व्यास नदी पर पोंग और पंदु बांध और रावी नदी पर रणजीत सागर बांध का निर्माण किया । इसके अलावा भारत ने नदियों के पानी के बेहतर इस्तेमाल के लिए व्यास – सतलुज लिंक, इंदिरा गांधी और माधोपुर – व्यास लिंक जैसी परियोजनाएं भी बनाई गई । 

इससे भारत को पूर्वी नदियों के करीब 95 फीसदी पानी का इस्तेमाल करने में मदद मिली हालांकि इसके बावजूद रावी नदी का करीब 2 एम ए एफ पानी हर साल बिना इस्तेमाल के पाकिस्तान की ओर चला जाता है इस पानी को रोकने के लिए भारत सरकार ने कई कदम उठाए हैं। 

इसमें एक अहम कदम शाहपुर घाटी परियोजना है इस परियोजना से थेन बांध के पावर हाउस से निकलने वाले पानी का इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर और पंजाब में 37000 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई तथा 206 मेगावाट बिजली के उत्पादन के लिए किया जा सकेगा।

Read more:

 यह परियोजना सितंबर 2016 में ही पूरी हो जानी थी लेकिन जम्मू-कश्मीर और पंजाब के बीच विवाद हो जाने के कारण 30 अगस्त 2014 से ही इसका काम रुका पड़ा है दोनों राज्यों के बीच आखिरकार इसे लेकर 8 सितंबर 2018 को समझौता हो गया इसके बाद से परियोजना का काम फिर से शुरू हो गया है।

ऐसे ही उच्च बहुउद्देशीय परियोजना को भी अहम कदम माना जा रहा है उद्देश्य परियोजना को भी अहम कदम माना जा रहा है इस परियोजना से वह नदी पर 781 मिलियंस सीएम जल का भंडारण किया जा सकेगा जिसका इस्तेमाल सिंचाई और बिजली बनाने में होगा इस पानी से जम्मू कश्मीर के कठुआ हीरानगर और सांबा जिले में 31380 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा सकेगी और उन्हें पीने के पानी की आपूर्ति हो सकेगी इसी तरह के उच्च के नीचे दूसरी रावी व्यास लिंक परियोजना भी शुरू की गई है।

इसके लिए रावी नदी पर एक बैराज बनाया जाएगा और व्यास बेसिन से जुड़े एक चैनल के जरिए नदी के पानी के बहाव को दूसरी ओर मोड़ा जाएगा उम्मीद की जा रही है कि इन तीनों परियोजनाओं से भारत सिंधु जल संधि 1960 के तहत मिले पानी के हिस्से का पूरा इस्तेमाल कर सकेगा।

वैसे देखा जाए तो सिंधु नदी जल तंत्र में भारत को कुल जल का मात्र 20 फीसद पानी ही प्राप्त हुआ है उस पर पश्चिमी नदियों के अपने हिस्से का भी हम आज तक इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं ऐसी स्थिति में बहुत से लोग इस समझौते को भारत के हित में न्याय पूर्ण नहीं मानते पाकिस्तान पर आयोजित आतंकी घटनाओं में बढ़ोतरी होने और उरी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के प्रति काफी असंतोष बड़ा जिसके बाद सिंधु जल संधि को खत्म करने की मांग काफी जोर-शोर से उठाई गई।

ऐसे में सवाल है कि सिंधु नदी के जल बंटवारे को लेकर विवाद क्यों है ? सिंधु जल समझौते के बाद भी दोनों देशों के बीच सिंधु जल को लेकर विवाद बना रहता है दरअसल 1976 के बाद से भारत द्वारा पश्चिमी नदियों पर सलाल पनबिजली परियोजना, वुलर बैराज परियोजना ,बगलिहार जल विद्युत परियोजना और किशनगंगा पनबिजली परियोजना जैसी कई परियोजनाओं पर काम शुरू करने के बाद से ही पाकिस्तान ने भारत पर संधि के उल्लंघन और पाकिस्तान में पानी की कमी के लिए जिम्मेदार होने का आरोप लगाया है। 

पाकिस्तान का कहना है कि पश्चिमी नदियों पर भारत की परियोजनाएं संधि के तहत निर्धारित तकनीकी शर्तों का पालन नहीं करती है इस मसले को लेकर पाकिस्तान भारत की शिकायत भी करता रहा है मसलन बगली हर हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट पर पाकिस्तान ने आपत्ति की थी । 2007 में पाकिस्तान की रिक्वेस्ट पर वर्ल्ड बैंक ने एक न्यूट्रल एक्सपोर्ट नियुक्त किया था ऐसे ही 2010 में किशनगंगा पनबिजली परियोजना के खिलाफ पाकिस्तान के अनुरोध पर 7 सदस्य कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन की स्थापना की गई थी। 

फिर एक चिंता चीन से भी जुड़ी हुई भी है दरअसल सिंधु और सतलज नदी तिब्बत से निकलती है और वर्तमान में चीन इन नदियों के भारत में प्रवेश करने से पहले इन पर बांध निर्माण या अन्य परियोजनाओं पर काम कर रहा है साथ ही दूसरी तरफ वर्तमान में पाकिस्तान और चीन के बीच इस क्षेत्र में लगातार सहयोग बढ़ा रहे हैं चीन पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में बड़े डैम बना रहा है जबकि वह भारत की छोटी परियोजना भी आपत्ति उठा रहा है ऐसे इन दोनों देशों के बीच बढ़ता सहयोग भारत के लिए चिंता का सबब बना हुआ है।

फिर भारत में एक वर्ग का मानना है कि इस समझौते से भारत को काफी आर्थिक नुकसान हो रहा है जम्मू-कश्मीर सरकार और वहां के बाशिंदों का भी मानना है कि इस समझौते के कारण इस प्रदेश को हर साल करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है यहां तक की समझौते पर  पुनर्विचार के लिए जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 2003 में एक प्रस्ताव भी पास किया था तमाम कोशिशों के बाद भी स्थितियां बेहतर नहीं हो सकी है लेकिन भारत को सिंधु रिवर बेसिन में यह फायदा मिलता है की इन नदियों के उद्गम के पास वाले इलाके भारत में पड़ते हैं। 

 यह नदियां भारत से पाकिस्तान में जा रही हैं और भारत चाहे तो सिंधु पानी को रोक सकता है इस लिहाज से यह समझौता भारत के लिए एक प्रभावी रणनीति का विकल्प है इसलिए पाकिस्तान हमेशा डरा रहता है कि जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन की हकीकत सामने आ रही है और जल संसाधनों की किल्लत बढ़ती जा रही है भारत के पानी को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की संभावना और बढ़ जाएगी।

सिंधु जल समझौता (Sindhu Jal Samjhauta): आगे की राह


ऐसे में सवाल है आखिर क्या हो आगे की राह? दोनों पड़ोसियों के बीच तीन योद्धा हो और लगातार तनावपूर्ण संबंधों के बावजूद सिंधु जल संधि चलती रही है इसलिए सिंधु जल संधि को आज दुनिया के सफल जल साझेदारी समझौता में रखा जाता है आज समय की मांग है कि जल विवाद पर बातचीत जारी रहनी चाहिए।

जानकारों का मानना है कि भारत और पाकिस्तान को सिंधु नदी तंत्र के जल के आर्थिक महत्व को देखते हुए इसकी क्षमता का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाने के लिए सिंधु जल समझौते के अनुच्छेद – 7  के तहत इसके विकास के लिए साझा प्रयासों को बढ़ावा देना चाहिए।

Read more: 3 महीने में एसएससी सीजीएल की तैयारी कैसे करें?

मौजूदा हालातों में भारत के पास इस संधि के प्रावधानों का अधिकतम लाभ उठाना ही सबसे बेहतर विकल्प होगा भारत द्वारा बेहतर जल प्रबंधन परियोजना के अभाव में 2 – 3 एम ए एफ पानी पाकिस्तान में चला जाता है फिर भारत द्वारा पश्चिमी नदियों पर विद्युत उत्पादन के कुल अनुमानित क्षमता का अब तक काफी कम दोहन किया जा सका है।

इसलिए भारत सरकार को सिंधु जल समझौते के तहत मिले अपने अधिकारों का पूरा फायदा लेने के लिए प्रयास करने चाहिए ताकि दोनों ही देश अपने-अपने हिस्से के अधिकारों का इस्तेमाल कर अपने हितों को साध सके।

निष्कर्ष: Indus waters treaty in hindi

दोस्तों मैं आपसे आशा करता हूं कि आपको यह सिंधु जल समझौता [ Indus waters treaty in hindi ] सिंधु जल समझौता क्या है (Sindhu jal samjhauta kya hai) के संबंध में जो कुछ भी जानकारी इस आर्टिकल से प्राप्त हुआ है वह आपको बहुत ही पसंद आया होगा और इस जानकारी को आप अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें । धन्यवाद !

Share it now:

Leave a Comment